कहानी: "नीम का सपना"

 कहानी: "नीम का सपना"


गाँव चंदनपुर में एक पुराना नीम का पेड़ था, जो गाँव के बीचोंबीच खड़ा था। सालों से वह सबका साथी था—गर्मी में छाया देता, बरसात में पत्तों की आवाज़ सुनाता, और सर्दी में चुपचाप ठंडी हवा में भी साथ निभाता।

नीम का पेड़ सब कुछ देखता था—बच्चों की शरारतें, बूढ़ों की कहानियाँ, और गाँव की हर छोटी-बड़ी हलचल। लेकिन अब समय बदल गया था।


धीरे-धीरे गाँव में बदलाव आने लगे। नए घर बन गए, सड़कें चौड़ी हो गईं, और लोग अपने-अपने काम में इतने व्यस्त हो गए कि किसी को नीम के पेड़ के नीचे बैठने की फुर्सत ही नहीं रही। पहले जहाँ बच्चे उसके नीचे खेलते थे, अब वहाँ मोटरसाइकिलें खड़ी रहतीं।

पेड़ उदास हो गया था।

एक रात, नीम के पेड़ ने सपना देखा।

सपने में उसने खुद को बोलते हुए पाया। वह गाँव के लोगों से कह रहा था, "मैं सिर्फ पेड़ नहीं हूँ, मैं तुम्हारा इतिहास हूँ, तुम्हारी यादें हूँ। अगर तुम मुझे भूल जाओगे, तो एक दिन खुद को भी भूल जाओगे।"

अचानक उसकी नींद खुल गई—या कहें, उसका सपना टूट गया। पेड़ सोच में पड़ गया—क्या पेड़ भी सपना देख सकते हैं?

अगली सुबह एक 10 साल का लड़का, विवेक, नीम के पेड़ के नीचे आया। वह अकेला था, स्कूल से छुट्टी थी और उसके दोस्त कहीं बाहर गए थे। उसने अपनी कॉपी निकाली और वहीं बैठकर कुछ लिखने लगा।

पेड़ ने गौर किया—लड़का लिख रहा था, “मेरे गाँव का नीम”।

विवेक ने लिखा:

“मेरे गाँव का नीम पेड़ बहुत बड़ा है। उसकी छाया में बैठकर ठंडक मिलती है। मुझे उसकी पत्तियों की खुशबू बहुत पसंद है। मुझे लगता है कि यह पेड़ मेरे सबसे पुराने दोस्त जैसा है।”

नीम का पेड़ अंदर से हिला। इतने समय बाद किसी ने उसे "दोस्त" कहा था।

अगले दिन विवेक फिर आया। इस बार वह अपने दादाजी को लेकर आया।

“दादाजी, यहाँ बैठो ना, आप कहते थे कि आप बचपन में यहाँ खेलते थे?”

दादाजी मुस्कुराए, लकड़ी की छड़ी टेकते हुए बैठे और बोले, “हाँ बेटा, जब मैं तुम्हारी उम्र का था, तो हम सब बच्चे इसी पेड़ के नीचे गिल्ली-डंडा खेलते थे। और गर्मियों में इसकी छाया में बैठकर आम खाते थे। यह पेड़ तब भी बड़ा था।”

विवेक चुपचाप सुनता रहा। दादाजी की आँखों में चमक थी, जैसे कोई भूली हुई दुनिया लौट आई हो।

अगले कुछ दिनों में विवेक रोज़ किसी न किसी को नीम के पेड़ के नीचे लाता—कभी माँ, कभी स्कूल की दोस्त रीना, कभी मोहल्ले की आंटी।

धीरे-धीरे पेड़ के नीचे चहल-पहल बढ़ने लगी।

विवेक ने स्कूल की पत्रिका में एक लेख भी लिखा: "अगर पेड़ बोल पाते..."
उसने लिखा:

“अगर पेड़ बोल पाते, तो वो हमें हमारे बचपन की बातें याद दिलाते। वो बताते कि हमने उन्हें कैसे अनदेखा किया। लेकिन शायद पेड़ चुप रहकर हमें सिखाते हैं—धैर्य, सेवा, और बिना शर्त प्यार।”

उसका लेख पढ़कर गाँव के प्रधान ने नीम के पेड़ के पास एक छोटा सा बोर्ड लगवाया, जिसमें लिखा था:
"यह पेड़ हमारे पूर्वजों की याद है। इसे संरक्षित करें। इसके नीचे बैठें, यादें बाँटें, और सीखें कि प्रकृति हमारी सबसे सच्ची शिक्षक है।"

अब नीम के नीचे एक छोटा सा पुस्तकालय बनने लगा। गाँव के बच्चे वहाँ किताबें पढ़ने लगे, बूढ़े वहाँ शाम को बैठकर किस्से सुनाने लगे।

एक दिन, गाँव में शहर से एक अफसर आया। उसने देखा कि बच्चे पेड़ के नीचे बैठकर कहानियाँ लिख रहे हैं, और पेड़ के नीचे एक छोटा सा मंच भी बन गया है, जहाँ बच्चे कविताएँ पढ़ते हैं।

उसने मुस्कुराकर पूछा, “ये सब किसने शुरू किया?”

सबने एक साथ कहा, “विवेक और नीम के पेड़ ने।

अफसर ने गाँव के लिए एक योजना पास की—"हर पेड़ एक पुस्तकालय"। इस योजना के अंतर्गत गाँव के हर पुराने पेड़ के नीचे बेंच और किताबों की एक अलमारी रखी जाएगी।

नीम का सपना पूरा हो गया था।

अब वह केवल एक पेड़ नहीं था—वह गाँव की पाठशाला था, बच्चों की कहानी, बूढ़ों की याद, और एक छोटे बच्चे की बड़ी सोच का गवाह।

रात को जब चाँद की रोशनी उसके पत्तों पर पड़ती, तो ऐसा लगता जैसे वह मुस्कुरा रहा हो।

शायद फिर से वह सपना देखता होगा…


शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि एक छोटा सा प्रयास भी बड़ा बदलाव ला सकता है। अगर हम प्रकृति से प्रेम करें, उसे समझें, तो वह भी हमें अपने खजाने खोलकर देगी—यादें, कहानियाँ और सीख।



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