कहानी: "भोलू और चिंकी की दोस्ती"
गाँव बड़ापुर में एक लड़का रहता था—नाम था भोलू। भोलू नौ साल का था, दुबला-पतला, मगर बेहद समझदार और दिल से साफ। उसके माता-पिता खेतों में काम करते थे, और भोलू ज़्यादातर समय अकेला रहता था।
एक दिन बारिश के बाद, भोलू खेत की ओर जा रहा था, तभी उसे एक झाड़ी के पास कुछ अजीब-सी आवाज़ सुनाई दी। वह धीरे-धीरे पास गया, तो देखा कि वहाँ एक छोटा सा पिल्ला काँप रहा था। उसकी आँखों में डर और भूख दोनों थे।
भोलू ने चारों तरफ देखा—कोई नहीं था। वह पिल्ले को अपनी चादर में लपेटकर घर ले आया।
“माँ, देखो! इसे मैं बचाकर लाया हूँ।”
माँ पहले तो झिझकी, लेकिन भोलू की आँखों में चमक देखकर बोली, “अगर इसकी देखभाल कर सको तो रख लो।”
भोलू खुश हो गया। उसने पिल्ले का नाम रखा चिंकी।
दिन बीतते गए। चिंकी अब भोलू की सबसे अच्छी दोस्त बन गई थी। दोनों हर जगह साथ जाते—स्कूल, खेत, तालाब, मंदिर। जब भोलू उदास होता, चिंकी उसके कंधे पर पंजा रखती। जब वह खुश होता, चिंकी उछल-उछलकर उसका साथ देती।
चिंकी सिर्फ भोलू की नहीं, पूरे गाँव की प्यारी बन गई थी।
एक दिन गाँव में एक अजीब सी बात हुई। खेतों से सब्ज़ियाँ गायब होने लगीं। लोग परेशान थे—कहीं कोई चोर तो नहीं?
गाँव वाले एक बैठक में इकट्ठा हुए और फैसला किया कि रात को निगरानी रखी जाएगी।
भोलू ने भी सोचा कि वह कुछ करेगा। उस रात वह चिंकी के साथ खेतों के पास गया और छिप गया।
आधी रात को, अचानक चिंकी ने भौंकना शुरू कर दिया।
भोलू ने देखा—दो लोग टोकरियाँ लेकर खेत में घुस आए थे!
चिंकी ने दौड़कर उन्हें घेर लिया और भौंकने लगी। डर के मारे वे दोनों भाग खड़े हुए।
अगले दिन भोलू ने गाँव वालों को सब कुछ बताया। गाँव वाले बहुत खुश हुए। उन्होंने भोलू और चिंकी को गाँव के वीर कहकर सम्मानित किया।
अब भोलू और चिंकी गाँव के हीरो बन गए थे। स्कूल में बच्चों ने उनके ऊपर एक नाटक तैयार किया—“भोलू और उसकी बहादुर दोस्त।”
एक दिन स्कूल में जिला अधिकारी आए। उन्होंने नाटक देखा और भोलू से पूछा, “तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?”
भोलू बोला, “मैं जानवरों का डॉक्टर बनना चाहता हूँ, ताकि मैं औरों की चिंकी जैसे दोस्तों की मदद कर सकूँ।”
अधिकारी मुस्कुराए और बोले, “बहुत अच्छा सपना है। तुम जरूर सफल होगे।”
समय बीतता गया। भोलू बड़ा हुआ, पढ़ाई में आगे बढ़ा। चिंकी भी अब बूढ़ी हो गई थी, लेकिन उसकी आँखों में वही प्यार था जो पहले दिन था।
एक दिन भोलू को शहर की एक बड़ी पशु-चिकित्सा संस्था से बुलावा आया। वह डॉक्टर बन गया।
जब वह पहली बार शहर से वापस गाँव आया, तो सीधा चिंकी के पास गया। चिंकी ने उसकी तरफ देखा, धीरे से अपनी पूँछ हिलाई और जैसे मुस्कराकर बोली—"तू सफल हो गया, दोस्त!"
भोलू ने चिंकी को गोद में उठाया और कहा, “अगर तू न होती, तो मैं कुछ न होता।”
शिक्षा:
जानवर हमारे सबसे सच्चे दोस्त होते हैं। वे बिना बोले हमारे दुख-सुख को समझते हैं। अगर हम उन्हें प्यार दें, तो वे पूरी ज़िंदगी वफ़ादार रहते हैं।