विचार एवं संपादकीय: बदलती शिक्षा व्यवस्था – ज़रूरत है सोच में बदलाव की(Thoughts and Editorial: Changing education system - there is a need for change in thinking)

 

✍️ विचार एवं संपादकीय: बदलती शिक्षा व्यवस्था – ज़रूरत है सोच में बदलाव की

शिक्षा का असली उद्देश्य केवल डिग्री या नौकरी नहीं, बल्कि सोचने और समझने की क्षमता को विकसित करना होना चाहिए।
आज की तेज़ रफ़्तार दुनिया में हमारी शिक्षा प्रणाली को भी उसी गति से आगे बढ़ने की ज़रूरत है। पर क्या हम सच में ऐसा कर पा रहे हैं?



आज भी ज़्यादातर स्कूलों और कॉलेजों में रट्टा प्रणाली हावी है। छात्र किताबों में लिखी बातें याद करते हैं, परीक्षाएँ देते हैं, और फिर भूल जाते हैं। यह सिलसिला सालों से चल रहा है, लेकिन इसका परिणाम क्या है? लाखों डिग्रीधारी बेरोजगार। ऐसा नहीं कि वे मेहनती नहीं हैं, परंतु उन्हें वो कौशल नहीं दिए गए जो आज की दुनिया माँगती है – जैसे कि सोचने की स्वतंत्रता, समस्या समाधान (Problem Solving), संप्रेषण (Communication), और डिजिटल कौशल।

शिक्षा व्यवस्था को सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित रखना आज के युवाओं के साथ अन्याय है।
हमें ऐसे पाठ्यक्रमों की ज़रूरत है जो बच्चों को आत्मनिर्भर, जिज्ञासु और नवोन्मेषी (Innovative) बनाएँ।
शिक्षा में कला, खेल, तकनीक और नैतिक मूल्यों को भी बराबर स्थान मिलना चाहिए।

शिक्षकों की भूमिका भी केवल 'पढ़ाने' तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। उन्हें एक मार्गदर्शक, एक प्रेरणा स्रोत और एक समझने वाला साथी बनना होगा।

निष्कर्ष:

शिक्षा सिर्फ अंकों का खेल नहीं है – यह एक इंसान को बेहतर सोच वाला, संवेदनशील और ज़िम्मेदार नागरिक बनाने का ज़रिया है। अगर हमें एक बेहतर समाज चाहिए, तो हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को भी बेहतर बनाना ही होगा – सोच से लेकर व्यवस्था तक।


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