आख़िरी पत्ते की कहानी
स्थान: पुराना शहर इलाहाबाद
समय: सर्दियों की सुबहें, जब पेड़ अपने पत्ते उतार कर चुपचाप किसी उम्मीद का इंतज़ार करते हैं।
🍂 शुरुआत
12 साल की अन्वी पिछले एक महीने से अस्पताल में थी। डॉक्टरों ने कहा था, "उसे ज्यादा समय नहीं बचा।"
उसे एक दुर्लभ बीमारी थी — उसकी हड्डियाँ बेहद नाज़ुक थीं।
वो चल नहीं सकती थी, लेकिन खिड़की से दिखता नीम का पेड़ उसकी दुनिया था।
हर दिन वो उसी खिड़की से बाहर देखती —
पेड़ के पत्ते धीरे-धीरे झड़ते जा रहे थे।
एक दिन उसने अपनी मां से पूछा,
“मां, जब आख़िरी पत्ता गिर जाएगा, क्या मैं भी चली जाऊंगी?”
उसकी मां चुप रह गई। और आंसू रोक लिए।
🍃 उम्मीद और डर
अन्वी की खिड़की के सामने का नीम का पेड़ अब लगभग नंगा हो चुका था।
बस एक आख़िरी पत्ता बचा था —
सूखा, पीला, कांपता हुआ — लेकिन अब तक टिका हुआ।
नर्सों ने भी देख लिया था। पूरा वार्ड अब उस पत्ते की ज़िंदगी की गिनती करने लगा था।
अन्वी हर सुबह आंख खोलकर वही देखती:
"आज भी टिका है?"
अगर पत्ता बचा है, तो मैं भी बची हूं।
🖌️ रहस्य शुरू होता है
वार्ड में एक बूढ़ा मरीज़ था — बाबा श्रीवास्तव।
उम्र: 76 साल
शौक़: पुराने चित्र बनाना और कहानियां सुनाना।
एक रात, जब सब सो गए थे, बाबा श्रीवास्तव धीरे से उठे।
उन्होंने अपनी पेंटिंग किट उठाई… और अस्पताल की छत पर चढ़ गए।
उन्होंने दीवार पर एक पत्ता पेंट किया — हूबहू वैसा ही जैसा नीम का आख़िरी पत्ता था।
उसके ठीक पीछे असली पत्ता भी लटका था, जो कभी भी गिर सकता था।
लेकिन अब, खिड़की से देखो तो दोनों एक जैसे लगते थे।
🌤️ अगली सुबह
अन्वी जागी और देखा — पत्ता अभी भी वहीं है।
उसकी आंखों में चमक आ गई।
उसने पहली बार मुस्कुरा कर मां से कहा:
“देखा मां, वो पत्ता आज भी लड़ रहा है… तो मैं भी लड़ूंगी।”
🪴 बदलाव की शुरुआत
हर दिन वो पत्ता वहीं दिखता।
डॉक्टरों को भी हैरानी हुई — अन्वी की हालत धीरे-धीरे बेहतर होने लगी।
उसके चेहरे पर रंग लौट आया था।
उसने खाना माँगा, और एक दिन तो हँसी भी।
बाबा श्रीवास्तव चुपचाप मुस्कराते रहे। किसी को नहीं बताया, कि असली पत्ता तो कई दिन पहले गिर चुका था।
🌈 सच्चाई का उजाला
एक दिन बारिश हुई। तेज़ हवाएं चलीं।
सबने सोचा — अब तो पत्ता जरूर गिर गया होगा।
लेकिन अगली सुबह भी पत्ता वहीं था।
टस से मस नहीं।
डॉक्टरों ने कहा, “ये चमत्कार है।”
पर बाबा श्रीवास्तव जानते थे — ये चमत्कार नहीं,
उम्मीद का रंग था।
📜 सच्चाई सामने
एक हफ्ते बाद बाबा की तबीयत बिगड़ गई।
वो अस्पताल के उसी बिस्तर पर थे।
अन्वी उनके पास आई, हाथ थामा और पूछा:
“बाबा, आप रोज़ मुझे उस पत्ते की कहानी सुनाते थे… पर ये कैसे अब तक नहीं गिरा?”
बाबा ने मुस्कराकर कहा:
“क्योंकि वो पत्ता असली नहीं है… वो तुम्हारी उम्मीद है। और उम्मीद कभी नहीं गिरती।”
बाबा उस रात हमेशा के लिए सो गए।
🍀 नया जीवन
अन्वी अब पूरी तरह से ठीक थी। चलने लगी थी। हँसने लगी थी।
और वो नीम का पेड़?
उस पर फिर से हरे पत्ते आने लगे थे।
लेकिन उस दीवार पर बना वो पेंट किया हुआ आख़िरी पत्ता,
अब भी वहीं था —
एक निशानी कि कभी-कभी एक छोटी सी चीज़, किसी की ज़िंदगी बचा सकती है।
समाप्त।
“आख़िरी पत्ते की कहानी” सिर्फ़ बीमारी और इलाज की बात नहीं है — ये उम्मीद, कला, और इंसानियत की ताकत की बात है।