तारों वाला सन्देशा
(Ek raat, ek ladki, aur ek anjaani duniya ka raaz)
🌌 प्रस्तावना
काव्या, 14 साल की एक शांत, कल्पनाशील लड़की थी।
गाँव के एक किनारे, पहाड़ियों के पास उसका छोटा-सा घर था।
हर रात, वो छत पर लेटकर तारों को देखा करती —
हर तारा उसे कोई कहानी लगता,
हर चमक में उसे कोई बात छुपी लगती।
माँ अकसर हँसकर कहती,
"इतनी तारों से बातें करेगी, तो एक दिन कोई जवाब दे देगा।"
काव्या मुस्कराकर कहती, "शायद मैं इंतज़ार ही उसी दिन का कर रही हूँ।"
☄️ गिरता तारा
एक सर्दी की रात थी। आसमान साफ़ था और सितारों की चादर फैली हुई थी।
काव्या छत पर लेटी थी, जब अचानक उसे एक चमकती रेखा आकाश में दिखाई दी —
एक तारा टूटकर गिरा।
लेकिन ये कोई आम टूटता तारा नहीं था —
ये बहुत बड़ा था, और आसमान में गिरते हुए नीली चमक छोड़ रहा था।
तारों की जगह जहाँ वो गिरा, वहाँ से हल्की नीली रोशनी उठती दिखी।
काव्या का दिल तेजी से धड़कने लगा।
वो तुरंत अपनी टॉर्च और स्केचबुक लेकर निकल पड़ी — अकेली, रात के सन्नाटे में, उस रहस्यमयी रोशनी की ओर।
🌲 जंगल के पार
घना जंगल, ठंडी हवा, और कहीं दूर किसी जानवर की आवाज़…
पर काव्या नहीं डरी।
आधे घंटे के बाद वो उस जगह पहुंची जहाँ वो तारा गिरा था।
पर वहां ना आग थी, ना राख —
बस एक गोलाकार नीली रेखा, जैसे ज़मीन पर किसी ने जादुई चॉक से गोला खींचा हो।
और उसके बीचों-बीच था एक चमकता हुआ पत्थर —
जिसके ऊपर कुछ लिखा था… किसी अनजान भाषा में।
लेकिन जैसे ही काव्या ने उसे छुआ,
लफ़्ज़ खुद-ब-खुद हिंदी में बदल गए।
🛸 सन्देश
संदेश लिखा था:
“तुम्हारी धरती सुन सकती है।
लेकिन क्या वो जवाब भी दे सकती है?
हम यहां थे, और फिर चले गए।
अब तुम वो हो जो हमारी बात आगे ले जा सकती है।
अगर तुम्हें यह सन्देशा मिला है, तो तुम चुनी गई हो।
देखो, सुनो, और फिर पूछो — 'मैं क्या सीख सकती हूं?'"
काव्या स्तब्ध थी। ये किसका सन्देशा था?
कौन थे "हम"? और उसने क्यों कहा कि “तुम चुनी गई हो”?
📚 बदलाव की शुरुआत
अगले कुछ दिनों में काव्या में अजीब बदलाव होने लगे।
उसे पेड़ की सरसराहटों में बातें सुनाई देतीं,
पानी की बूंदों से ध्वनि महसूस होती,
और आसमान के तारों से किसी और तरह की भाषा झलकती।
उसने उन ध्वनियों और इशारों को अपनी स्केचबुक में उतारना शुरू किया।
जल्द ही, उसके चित्र सजीव लगने लगे।
कुछ तो खुद-ब-खुद खिंच जाते जैसे किसी और ने उसकी उंगलियों को चला दिया हो।
🌠 विज्ञान या जादू?
काव्या ने अपने स्कूल के विज्ञान अध्यापक से पूछा —
“क्या तारे कभी सन्देश भेजते हैं?”
वो हँसे और बोले, “नहीं बेटा, तारे सिर्फ़ प्रकाश देते हैं। सन्देश नहीं।”
लेकिन काव्या को यक़ीन था —
यह तारा सिर्फ़ गिरा नहीं था, वो आया था।
🛸 एक और गिरावट
एक हफ्ते बाद एक और नीली रेखा दिखाई दी।
इस बार, काव्या ने अपनी स्केचबुक की मदद से उसे पहले से पहचान लिया।
उसने महसूस किया कि इन सन्देशों में एक पैटर्न है —
मानो कोई भाषा, कोई कोड, जो उसे कुछ सिखा रहा है।
और अंत में, एक तीसरा संदेश आया:
“अब तुम तैयार हो।
अगली बार जब कोई तारा गिरे —
तुम्हें हमारे साथ आना होगा।
सीखने के लिए, और फिर सिखाने के लिए।”
🌌 आख़िरी यात्रा
फिर एक रात, वो तारा गिरा —
बिल्कुल उसी जगह,
पर इस बार उसके गिरते ही एक नीला द्वार खुल गया।
काव्या ने अपनी स्केचबुक उठाई, पीछे मुड़कर देखा…
फिर एक गहरी साँस ली और कदम आगे बढ़ा दिए।
वो प्रकाश में लिपटी, हवा में तैरती चली गई।
🚀 समापन
गाँव में लोग कहते हैं कि काव्या कहीं चली गई —
पर उसकी माँ रोज़ रात को छत पर जाती है।
और एक नया नीम का पौधा, जो बिना बीज के उगा है,
उसमें कभी-कभी एक पत्ता नीला हो जाता है —
जैसे कोई दूर से हाल भेज रहा हो।
उसकी स्केचबुक अब स्कूल की लाइब्रेरी में रखी है।
और उस पर लिखा है:
"मैंने तारे देखे,
फिर उनके साथ चली गई —
कुछ सीख कर वापस लौटने के लिए।”
समाप्त।
“तारों वाला सन्देशा” एक ऐसी कहानी है जो कल्पना, अंतरिक्ष, और आत्म-खोज को जोड़ती है — बच्चों और बड़ों दोनों को प्रेरित करने वाली।